भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं।
भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।
टिका शुभ मुहूर्त-
भाई दूज (21 अक्टूबर, 2017) के दिन बहने अपने भाइयों को तिलक करते हुए, उनकी लम्बी व खुशहाल ज़िन्दगी की कामना करती है।
और भाई अपनी बहनो को सप्रेम उपहार देते हैं।
भाई दूज तिलक मुहूर्त: दोपहर 1:23 बजे से 03:39 बजे तक
द्वितीय तिथि प्रारम्भ: 21 अक्टूबर, 2017 को 01:37 बजे से
द्वितीय तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर, 2017 को 03:00 बजे तक
भाई दूज, भाई और बहन के बीच के प्यार का त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का अपना महत्व है। इसको मनाए जाने का कारण भी है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सूर्य की संज्ञा से दो संतानें थी एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर सकी और छायामूर्ति का निर्माण करके अपने पुत्र और पुत्री को सौंपकर वहां से चली गईं। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, लेकिन यमराज और यमुना में बहुत प्रेम था। यमराज अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे, लेकिन ज्यादा काम होने के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए उनसे मिलने पहुंचे। भाई को आया देख यमुना बहुत खुश हुईं। भाई के लिए खाना बनाया और आदर सत्कार किया। बहन का प्यार देखकर यम इतने खुश हुए कि उन्होंने यमुना को खूब सारे भेंट दिए।
पौराणिक कथा–
सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संताने थी। उनमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों के दंड देते देख दुखी होती, इसीलिए यह गोलोक में चली गई। समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए, जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई।
इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा कि हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करें, वह यमपुरी नहीं जाए। यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिंतित देख, बहन बोली भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई मिलन के इस पर्व को भाई-दूज के के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भाई का अपने घर भोजन न करके बहन के घर भोजन करने से उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ एवं सुख की प्राप्ति होती है।
भाई दूज कैसे मनायें –
इस दिन यमुना नदी में स्नान हो पाए तो अति उत्तम अन्यथा घर में नहाते वक्त यमुना जी का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। दोपहर में शुभ मुहूर्त में बहन के घर सुविधानुसार या बहन की पसंद के अनुसार मिठाई, फल, उपहार, कपड़े आदि लेकर जाना चाहिए।
भाई दूज पर टीका
– बहन अपने भाई का प्रेम पूर्वक आदर सत्कार करे।
– टीका के लिए थाली सजाये जिसमे रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल ) रखें।
– थाली में एक दीपक जला लें।
– साफ और शुद्ध छोटे लोटे में जल भरकर रखें।
– नारियल, मिठाई रखें।
– भाई को बैठाकर शुभ मुहूर्त में रोली से टीका करें।
– तिलक पर अक्षत ( साबुत चावल ) चिपकाएँ।
– अब दायें हाथ में लच्छा या मौली बांधें।
– भाई को अपने हाथ से मिठाई खिलाएँ।
– भाई के हाथ में नारियल दें।
– भाई की बलाइयां लें।
– थाली को तीन बार घुमाकर आरती उतारें और मन्त्र –
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तुते।। पढ़ें
– लोटे से दोनों तरफ थोड़ा थोड़ा जल डालें और विभिन्न प्रकार के व्यंजन अपने हाथ से बनाकर खिलाती हैं.
– अब भाई बहन के लिए साथ में लाये उपहार आदि भेंट करे।
– ऐसी मान्यता है कि इस दिन शादीशुदा बहन को उपहार , रूपये पैसे , मिठाई , फल आदि की खुशी देते है। उनको सुख समृद्धि स्वास्थ्य यश धन आयु की कमी नहीं रहती
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